बारिश की बूंदें जैसे उस दिन कुछ खास कह रही थीं। वो जुलाई की शाम थी और रेलवे स्टेशन पर हमेशा की तरह भीड़भाड़ का माहौल था। लोग अपने-अपने रास्तों की ओर भागे जा रहे थे, मगर मैं वहीं खड़ा था – एक खास पल का इंतज़ार करते हुए।
उसका नाम स्नेहा था। हमारी मुलाकात एक ट्रेन जर्नी के दौरान हुई थी, जब हम दोनों दिल्ली से मुंबई जा रहे थे। सीटें आमने-सामने थीं, और सफर लंबा। शुरुआती बातचीत किताबों से शुरू हुई, और धीरे-धीरे हमारी रुचियाँ मिलती चली गईं। दो दिन के उस सफर में ऐसा लगने लगा मानो हमें बरसों से एक-दूसरे को जानते हों।
मुंबई पहुंचने के बाद नंबर एक्सचेंज हुआ और हमारी बातें व्हाट्सएप और कॉल्स पर चलती रहीं। हम दोनों अलग-अलग शहरों में रहते थे, मगर दिल की दूरी खत्म हो चुकी थी। वो इंदौर में रहती थी और मैं मुंबई में। कुछ महीने बाद उसने बताया कि वो मुंबई आ रही है – सिर्फ मुझसे मिलने।
मैं स्टेशन पर पहुँचा तो बारिश हो रही थी। हाथ में फूलों का गुलदस्ता था और दिल में हज़ारों ख्वाब। वो आई, मुस्कराई, और हल्के से बोली – “मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।”
हम प्लेटफॉर्म के एक कोने में चले गए, जहाँ थोड़ी सी खामोशी थी। उसने मेरी तरफ देखा और बोली, “मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, लेकिन घर वाले मेरी शादी कहीं और तय कर चुके हैं। मैं कुछ नहीं कर पा रही…”
मैं स्तब्ध था। शब्द जैसे गले में अटक गए थे। मैंने उसका हाथ थामा, लेकिन उसकी आंखों में आंसू थे। तभी अनाउंसमेंट हुआ – “ट्रेन नंबर 12961, अवंतिका एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर आ रही है।”
वो कुछ पल चुप रही और फिर धीरे से बोली, “अगर मेरा बस चलता तो मैं तुम्हारे साथ भाग जाती, लेकिन मैं कमज़ोर पड़ गई…”
वो मुड़ी और धीरे-धीरे चलते हुए ट्रेन की ओर बढ़ गई। मैंने सिर्फ उसका लाल दुपट्टा उड़ते हुए देखा और मन में एक खालीपन भर गया।
ट्रेन चली गई। उसके साथ मेरी अधूरी मोहब्बत भी।
आज भी जब कभी बारिश होती है, और रेलवे स्टेशन से गुजरता हूँ, तो वो पल ज़ेहन में ताज़ा हो जाता है। स्नेहा गई, मगर उसकी यादें वहीं प्लेटफॉर्म पर आज भी मेरा इंतज़ार करती हैं।